भरथना (रिपोर्ट- तनुज श्रीवास्तव, 9720063658)- मानसून के दस्तक देते ही सरकार बीते वर्षों की भाँति प्रत्येक सावन में पौधरोपण का लक्ष्य निर्धारित करने लगती है। जिसमें प्रति वर्ष विभिन्न प्रजाति के लाखों पौधे रोपित करने के लिए करोडों रूपये का व्यय होता है, किन्तु बीते वर्ष लगाये गये पौधों में कितने पौधे जीवित रहकर पेड बनें, इस पर कोई कार्यवाही न होने के फलस्वरूप पूर्व में लगाये गये पौधों में से 20-30 प्रतिशत पौधे ही जीवित रहकर पेड बनते हैं और हमारे पर्यावरण सन्तुलन में सहभागी बनते हैं।
सुधीर यादव एडवोकेट का कहना है कि जिस प्रकार सरकार बरसात के दिनों में फल, छाया व बेलदार पौधों की विभिन्न प्रजातियां रोपित करवाती है, ठीक उसी प्रकार इसके नियमित पानी, खाद व अन्य देखरेख की जिम्मेदारी भी सौंपी जाये। ताकि लगाये गये सभी पौधे सुरक्षित रह सकें।
सत्यभान गुप्ता (राजा) ने कहा कि सरकार जिन सरकारी, अर्द्धसरकारी, निजी, शिक्षण संस्थानों में पौधे रोपित करवाती है, उनकी समुचित देखभाल के लिए संस्थाध्यक्षों को इसकी जिम्मेदारी सौंपे, ताकि रोपे गये पौधे अधिक से अधिक संख्या में पेड बन सकें और पर्यावरण में शुद्धता घोल सकें। क्योंकि बढती आबादी व सम्पूर्ण देश में विभिन्न मार्गों के चौडीकरण, नये रेलमार्ग/हाईवे निर्माण में वर्षों पुराने वृक्षों का बडी संख्या में लगातार कटान हो रहा है।
मनोज सक्सेना ने कहा कि जब तक सरकार रोपे गये पौधों के रखरखाव व उनकी देखरेख की कोई रूपरेखा तैयार नहीं करती, तब तक प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में विभिन्न प्रजातियों के पौधे रोपने का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आयेगा और दिनोंदिन पर्यावरण पर गहरा संकट छाता रहेगा।
बलराम सिंह यादव ने कहा कि जिन स्थानों पर विगत वर्ष पौधे रोपित किये गये हैं, वहाँ कितने पौधे वर्तमान में जीवित हैं और कितने देखरेख के अभाव में सूख गये हैं, इसकी जबाबदेही होना चाहिये। तभी पौधे रोपने की सार्थकता सिद्ध होगी। अन्यथा लगातार हो रहे वृक्षों के कटान व इसी प्रकार पौधरोपण के साथ फोटोग्राफी व अखबारों की सुर्खियों की परम्परा के चलते हरियाली समाज से धीरे-धीरे विलुप्त हो जायेगी और वातावरण हमारे लिए नुकसानप्रद हो जायेगा।