इटावा एआरटीओ कार्यालय में सख्ती के बावजूद दलालों का जमावड़ा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। डीएल (ड्राइविंग लाइसेंस) की तय 1500 रुपये की फीस देने वाले लोगों को लगातार चक्कर काटने पड़ रहे हैं, जबकि दलालों को 3500 रुपये देने पर बिना किसी परेशानी के काम हो जाता है। यह स्थिति एआरटीओ कार्यालय के कामकाज की पारदर्शिता पर सवाल उठाती है।
शनिवार को जब एआरटीओ कार्यालय की पड़ताल की गई, तो यह सामने आया कि कार्यालय के बाहर दुकानदारों की दुकानें सजी थीं और काउंटरों पर लोग लाइनों में लगे हुए थे। इसी बीच दलाल खुलेआम अंदर जाकर काम करवा रहे थे। दिलचस्प बात यह है कि अगर कोई व्यक्ति दलाल के माध्यम से लाइसेंस बनवाता है, तो उसे 3500 रुपये का भुगतान करना पड़ता है, जबकि बिना दलाल के यही काम 1500 रुपये में हो जाता है।
एआरटीओ कार्यालय में लाइसेंस बनाने के लिए फीस संरचना भी साफ नहीं है। एक साधारण व्यक्ति को लर्निंग लाइसेंस के लिए 400 रुपये की फीस देनी पड़ती है, जिसमें उसे केवल आधार कार्ड देना होता है। इसके बाद, एक माह के अंदर उसे परमानेंट लाइसेंस के लिए 1100 रुपये की फीस देनी होती है। इस प्रकार नए लाइसेंस के लिए कुल 1500 रुपये खर्च होते हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया सामान्य रूप से तीन से छह माह तक की समयावधि में पूरी होती है।
वहीं, यदि यह काम दलाल के माध्यम से करवाया जाए, तो यह प्रक्रिया बहुत तेज हो जाती है, लेकिन इसके बदले में 3500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। दलाल इस काम को महज कुछ ही दिनों में पूरा कर देते हैं, जिससे लोगों को झंझट से बचने का रास्ता मिल जाता है। यह स्थिति सरकारी प्रणाली में पारदर्शिता की कमी को उजागर करती है और आम लोगों को मजबूर करती है कि वे बिना किसी परेशानी के काम करवाने के लिए दलालों का सहारा लें।